जवाहर टनल : एक स्याह सुरंग और
उजाले की अन्तहीन तलाश...
- जयश्री रॉय
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जवाहर टनल (कविता संग्रह) - अग्नि शेखर |
'जवाहर टनल'- यही शीर्षक है अग्नि शेखर के काव्य संग्रह का। इसमें इनकी तकरीबन 57 कविताएँ हैं। कविताएँ- अन्तहीन दु:स्वप्न, यातना और दंश की मार्मिक अभिव्यक्ति और इसके
साथ ही इस त्रासद दौर के बीच से अपनी आस्था और प्रेम को बचा ले जाने की जिद्द... टूटे-हारे
जनों की गाथा जो मटियामेट होकर भी झुके नहीं हैं ! चल रहे हैं अविराम जीवन का अग्निपथ और उनका हौसला
आज भी आकाश को छूता है।
इन कविताओं में जो कुछ भी है वह किसी उदास इन्द्रधनुष की तरह खूबसूरत है, मगर उतना ही त्रासद भी ! इन्हें पढते हुए हार-मज्जे में सन्नाटा धंस आता है और एक आतंक - एकदम अछोर, अतल...
जवाहर टनल के एक तरफ है कश्मीर और दूसरी तरफ शेष भारत, बकौल कवि के ''हिंदुस्तान- मेरा देश महान...' बीच में एक सुरंग है- गहरा स्याह और अन्तहीन ! इसी में फंसे हुए हैं सैकडों लोग- विस्थापित- अपनी जन्नत से- दोजख की ओर- एक लंबी, अनजान यात्रा पर...
अपनी जडों से कट जाने की, बेघर हो जाने की वही सदियों पुरानी कहानी... हासिल के नाम पर, सरमाये के नाम पर रूह तक धंसी हुई अपनों की दी हुई यातना का दु:सह बोझ और पसलियों में अटके आँसुओं का नमकीन झेलम बस यही, और कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं...
पूरी तरह लुटकर भी बहुत कुछ बचा लाये हैं यह लोग- शरणार्थी- अपने साथ- अपनी जमीन का प्यार, उसकी मृदुल स्मृतियाँ, और एक लौ देती उम्मीद। उम्मीद- अपनी जन्नत में एक दिन लौट सकने की, उन अपनों से मिलने की जिन्होंने उन्हें गैर भी न समझा... अपना घर-वार, जमीन, दौलत तो वे छोड़ आये थे, मगर अपनी जेबों में चुनार की पत्ती और गाँव की मिट्टी हीरे-मोतियों की तरह भर लाये थे.. टनल के गहरे अंधकार में कवि को अपने जनकवि ललद्यद की कविताएँ याद आती हैं, हौसला देती हैं- जमीन छुटी है, उम्मीद नहीं... एकदिन शायद, नहीं, एकदिन जरूर...
कृषकाय वृद्धों की बची-खुची जिंदगी..यही उपलब्धि है धरती के स्वर्ग के इन आदि संतानों के पांच हजार वर्षों की गरिमामय विरासत की! किसने उन्हें ये घाव दिए ? जलावतन किया ? कवि समझ नहीं पा रहा है। यह दहशतगर्द चेहरे उन्हीं के जैसे हैं, उन्हीं में से के हैं ! वही खून, वही नश्ल, और वही रंगत... फिर ? सवाल ! सवाल और सवाल... मगर जवाब कहीं नहीं । खून की पिचकारियाँ, नृशंस अट्टहास और कानों को भेदते नारे- 'अल जेहाद !', 'अल जेहाद...!' जेहाद... मासूम बच्चों की लाशें, अबलाओं की तार-तार हुई अस्मत और कत्ल हुए यकीन के जिस्म पर से गुजरते हुए जेहाद... न जाने इन गुनाहों का देवता कौन है, क्या है इनका ईमान !
कवि खुद को अपने हमवतन की आँखों में ढूँढता है, अदब और जुबान में ढूँढता है, मगर कहीं नहीं पाता। सबकी निगाहें झुकी हुई हैं, कतरा रहीं हैं ! जुबान सिले हुए हैं। अभिव्यक्ति के खतरे उठाये नहीं जा सकते। मजबूरी है- धर्म निरपेक्ष और बुद्धिजीवी होने की। इसी में प्रगतिशीलता है, उदारता है और शायद कुछ ईनाम, सम्मान भी। मानवाधिकार, जलूस, नारे यहाँ उन जैसे निर्दोषों के लिए नहीं, बल्कि उनके लिए हैं जिनके हाथों में ए. के. 47 है .बकौल कवि के - चुप थीं भेड़ें और यही था सद्भाव कसाईबाडे का...
अग्नि शेखर |
अपनी जमीन, चेहरा और पहचान
खोकर अपने ही देश में विस्थापित यह लोग जिन्हें अब गैरों से क्या, अपनों से भी कोई उम्मीद नहीं रह गयी है।
शरणार्थी शिविरों में कीडे-मकौडों की तरह गिबिजाते, गृह मंत्रालय के चक्कर लगाते, पिटते, घसीटे जाते इनके जीवन का एक ही मकसद है, एक ही लक्ष्य- अपनी जमीन, अपनी जन्नत, जिसकी ख्वाहिश में वे सदियों से दोजख की जिंदगी जिए जा रहे हैं। इस तकलीफ, इस अजाब का अंत कहाँ है !
चिर वांछित मातृभूमि, झेलम की सुनहली धार, बादाम के गुलाबी फूल, नर्गिस की उजली मुस्कराहट, पंचाल पर्वत की गगनचुम्बी रेखाएँ, अमरनाथ की गुफा, तवी, मलका पुखराज, सूर्यकुंड का हरा जल, चिमेगोइयाँ... सबकुछ स्वप्नवत् होकर स्मृतियों में लौट आता है और कवि सो नहीं पाता। सपनों में वर्फ झड़ता है, अगजग सफेद हो जाता है, फूलों की वादियों में बहार की पालकी उतरती है... स्मृति, यातना और शरणार्थी शिविरों का अवहेलित, त्रसित जीवन... एक के बाद एक कविताएँ- दर्द का सिलसिलेवार ब्योरा, दुखों का उपेक्षित इतिहास- एक पाकिस्तानी दोस्त का आना, गृह मंत्रालय में चूहेदानी, शांतिवार्ता आदि- 57 कविताएँ, 57 घाव,- रिसते हुए, दगदगाते हुए, नासूर बनते हुए...
कवि हर स्तर पर अपने पाठक को छूता है, रूलाता है, उसे सोचने पर विवश करता है। उसकी आँखिन देखी बातें इतिहास के उस कालखंड का दस्तावेज है जो सियासत के दाव- पेचों में उलझकर कहीं दर्ज नहीं हो पाया , सुना नहीं गया, नकारा गया एक सिर से..
कथ्य के स्तर पर ही नहीं, भाषा, भाव, शैली के स्तर पर भी अग्नि की कविताएँ अद्भुत हैं।. संवेदनाएँ ऐसी कि शब्द- शब्द धडकते हुए, जीवंत प्रतीत होते हैं।
इन कविताओं की सबसे बडी विशेषता यह है कि ऐसी संवदनशील विषय को भी कवि कहीं अमानवीय, प्रतिक्रियावादी या हिंसक नहीं होने देता। वह मनुष्य है, इसलिए आहत है, खंडित है, मगर हारा हुआ कतई नहीं है . घृणा, संशय की गहरी, विषाक्त दुनिया और हत्यारे समय के चंगुल से वह अपनी आस्था और प्रेम को सकुशल बचा लाने के लिए प्रतिबद्ध है। किसी भी कठिन परिस्थिति में अपना यकीन नहीं खोता, विपर्जय में दिशाहारा नहीं होता। उसे अपनी सर्वधर्म सद्भाव, सहिष्णुता और अहिंसा, प्रेम की सनातन परंपरा और विरासत पर विश्वास है।. वह बुद्ध का, राम का, अशोक का वंशज है, उनका उत्तराधिकारी है। उनकी महान परंपराओं का वाहक, थाती का रक्षक है। घृणा और हिंसा इस जमीन की ऊपज नहीं, उसका चरित्र विदेशी है, यहाँ की मिट्टी में, जनमन में वह आज भी फलीभूत नहीं हो पायेगा। कभी नहीं हो पायेगा।
जयश्री रॉय |
हर कविता में जो कामना अंत:सलिला नदी की तरह बहती हुई प्रतीत होती है वह है कवि का सपना कि इस दुनिया के माथे पर छाई घृणा, संशय और संदेह की मलिन छायाएँ छँटे और मनुष्यता का खोया हुआ चेहरा एक बार फिर से जल्वागर हो और सरहदों, मजहबों में बंटी हुई इस दुनिया के गर्द में बरसों पहले खो गयी उनकी जमीन, उनकी जन्नत उन्हें फिर से मिल जाय। कवि कहता है, चाहे कोई उसकी हत्या ही करके उसे उसकी मातृभूमि में दफ्न कर दे, वह तरस गया है अपनी जमीन के स्पर्श के लिए... पढकर आँसू निकल आते हैं। ऐसी कलप जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
कविता संग्रह में दो-चार दूसरे मिजाज की भी कविताएँ हैं, मगर इसका मूल स्वर और केन्द्रिीय भाव बस यही है- अपनों का दिया दंश, अपनी मातृभूमि की स्मृति, स्वप्न भंग की अन्तहीन यात्रा, संघर्ष, अथक जिजीविषा और कभी न टूटने-हारनेवाली आस्था और एक सुनहले भविष्य का विश्वास कि एकदिन राम का वनवास खत्म होगा, एकदिन रावण की पराजय होगी और एकदिन अंधकार के सीने पर सत्य, अहिंसा और धर्म की दीप मालिकाएँ प्रज्वलित होंगी, पाप का समूल नाश होगा... इन कविताओं में अन्तर्निहित प्रार्थना को पढते हुए एक ही ख्याल मन में सहज उमड़ता है- आमीन ! आमीन ! आमीन !
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कविता संग्रह: जवाहर
टनल
कवि : अग्नि शेखर
प्रकाशक: मेधा बुक्स
नवीन शाहदरा, दिल्ली- 110032
मूल्य : 150
अति सुंदर रचना है , क्यों न बार बार पढूं ?
ReplyDelete"इन कविताओं की सबसे बडी विशेषता यह है कि ऐसी संवदनशील विषय को भी कवि कहीं अमानवीय, प्रतिक्रियावादी या हिंसक नहीं होने देता। वह मनुष्य है, इसलिए आहत है, खंडित है, मगर हारा हुआ कतई नहीं है . घृणा, संशय की गहरी, विषाक्त दुनिया और हत्यारे समय के चंगुल से वह अपनी आस्था और प्रेम को सकुशल बचा लाने के लिए प्रतिबद्ध है। किसी भी कठिन परिस्थिति में अपना यकीन नहीं खोता, विपर्जय में दिशाहारा नहीं होता। उसे अपनी सर्वधर्म सद्भाव, सहिष्णुता और अहिंसा, प्रेम की सनातन परंपरा और विरासत पर विश्वास है।"...!!!
ReplyDeleteकाश्मीर की संस्कृति और दुख देखना हो तो अग्निशेखर की कवितायें हमारी मदद करती है..कविताओं को पढ़ते हुये हम गहरी यातना से गुजरते है यह कवि की निजी यातना भी है.
ReplyDeleteअच्छी कवितायेँ , अग्निशेखर जी की कविता ** जवाहर टनल ** का मैंने बांग्ला भाषा में अनुवाद किया है ।
ReplyDeleteबढ़िया
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