Wednesday, February 16, 2011

पहली किताब


कठिन और बंजर होते समय में कविता
                                                       विमलेश त्रिपाठी

नील कमल की पहली किताब
समकालीन हिन्दी कविता की जमीन काफी उर्वरा रही है। कवि और कविताओं की कमी नहीं। पत्रिकाओं में कविताएं बेशुमार छप रही हैं। और छप रहीं हैं कविताएं तो जाहिर है कि लिखी भी काफी तादात में जा रही हैं। लेकिन इसके साथ-ही-साथ कविता से नीजपन के गायब होते जाने की चिंता भी उठ रही है।  कवि वैश्विक कविताएं लिख रहे हैं। और यह भी एक तथ्य है कि यदि कविता की अपनी भारतीय जमीन की तलाश करने निकलें तो हाथ बहुत कम ही कुछ लगता है। लेकिन ऐसे कविता और अकविता समय में कुछ ऐसे कवि भी हैं जो चुपचाप कविताएं लिख रहे हैं बिना किसी शोर-शराबे, बिना किसी दावे के। अन्य कवियों का नाम न लेते हुए भी यह कहना चाहिए कि नील कमल का सद्यप्रकाशित काव्य संग्रह हाथ सुंदर लगते हैं, हमें कविता के नीजपन और भारतीय जमीन की तलाश करता-सा दिखता है और उपरोक्त आरोपों से इत्तर आपनी एक नवीन पहचान और नूतन शिल्प और संवेदना के साथ हिन्दी कविता के फलक पर अवतरित हुआ-सा लगता है। इस मायने में संग्रह के कवि नील कमल की प्रसंशा की जानी चाहिए।
नील कमल लगभग दो दशकों से चुप-चाप कविताएं लिख रहे हैं। पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं यत्र-तत्र दिखती हैं, लेकिन अब जब उनका काव्य संग्रह छपकर आ चुका है तो उनपर बातचीत भी होनी चाहिए।
नील कमल अपने कविता संग्रह के शुरू में ही इस सवाल से टकराते हैं कि कविता का आने वाले दिनों में भविष्य क्या होगा। बात बेहद गंभीर है लेकिन कवि इस सवाल को जब कविता में उठाता है तो सवाल अपनी गंभीरता में और अधिक मारक हो जाता है। साथ ही कविता कुछ स्पष्ट और तीखे संकेत भी दे जाती है, जिसे कत्तई नाकारात्मक नहीं कहा जा सकता।

                  थक चुकी होगी वह
नहीं पूछेंगे लोग उसे
कौड़ी के मोल
लेकिन

कविता फिर भी लिखी जाएगी
कविता की अय्यारी
उनसे न तोड़ी जाएगी
बड़े से बड़े तिलिस्म की चाबी
ढूंढ़ता वक्त
आएगा बार-बार उसी के पास।

एक अन्य कविता में कवि संकेत देता है कि कुछ न कर सकने की सूरत में भी हम यह तो कर ही सकते हैं कि कविता में झूठ को बेनाकाब करें। पांच सौ पैंतालिस कुर्सियों वाले गोल घर में जब सवा करोड़ लोगों के नुमाइंदे जोकर और भांड़ बन गए हों, तब एक कवि उनकी बेशर्मी को बेपर्दा करने के लिए कविता को अपना हथियार बना ही सकता है। जब अपने जीवन और जगत के झमेले में फंसा एक इंसान, जो कवि भी हो सकता है, हथियार उठा सकने की स्थिति में न हो, तो कम-अज-कम कविता में अपना विरोध तो दर्ज कर ही सकता है। कविता में यह दर्ज हुआ विरोध एक-न-एक-दिन सड़क पर भी उतरेगा, इतने का सपना एक संवेदनशील मनुष्य देख ही सकता है। निर्मम से निर्मम हो गए समय में भी सपने देखने के अधिकार को जो गिरवी नहीं रखता, वही तो सही मायने में कवि होता है। और क्या यह भी एक बहुत बड़ा सच नहीं है कि बड़े से बड़े तिलिस्म की चाबी ढूंढ़ता वक्त आएगा कि आता ही है बार-बार कविता के पास ही।

आस्तीनों में पाले हुए सांप
जब उतारने लगें जहर
हमारी ही नीली नसों में
और लहू के लाल रंग पर हो खतरा
...
सचमुच हम कर भी क्या सकते हैं
सिवाय इसके कि लिखें
कुछ और बेहतर कविताएं
इस कठिन और बंजर होते समय में।

कवि और कविता की जरूरत पर बहस करती नील कमल की कविताएं आशा-निराशा के कई द्वीपों की यात्रा करती हुई भी प्रसवमुखी होना चाहती हैं। इस प्रसवमुखी होने के पूर्व चाहे जितनी  उथल-पुथल हो, भले ही तार टूट जाएं, गले की पेशियां खींच जाएं, राग बिखरने लगें, लेकिन कोटि-कोटि प्रारब्ध लिखे जाने से पूर्व ही मिटा दिए जायं और ईश्वर की भाषा आम जनता अपने कंठों में उतार ले। कि

समय गर्भ धारण करे
प्रसवमुखी हो नई कविता
अनुपम, अद्वितीय, अनिंद्य, देवोपम सौंदर्य से बिंधी।

इस क्रम में इस संग्रह की एक और कविता यह कविता समय का उल्लेख करना जरूरी है। कवि इस कविता में वर्तमान कविता समय की तुलना चिड़िया की चोंच में दबे तिनके, सर्दियों के मौसम में बर्फ के नीचे दबे फूल के पराग, डूबते आदमी के फेफड़े की बची-खुची हवा, मिट्टी की तह में दबी सदाबहार दूब से करता है। यह सही है कि आज का कविता समय कई तरह के समय के दबावों से जूझ रहा है। कुछ आलोचकों ने तो कविता की बहुत ही खराब अवस्था तक का जिक्र किया है। कुछ इसी तरह की चिंता नीलकमल भी अपने तरीके से अपनी कविताओं में जाहिर करते हैं लेकिन उनका स्वर निराशा की ओर नहीं जाता। वे महसूस करते हैं कि बुरे समय में कविता की जरूरत किसी भी अन्य जरूरी चीजों की तरह ही आवश्यक होता है बल्कि अन्य चीजों से भी अधिक जरूरी। इसलिए वे कठिन और बंजर होते समय में कविता को बचाए रखने की पहल करते हैं
इस कविता समय में /कितना मुश्किल है/कविता को बचाए रखना/किसी जरूरी चीज की तरह/ठीक वैसे, जैसे कि/चिडि़या के लिए घोसला/जिंदगी के लिए हवा/और हरियाली के लिए दूब/क्योंकि बुरे वक्त में/काम आते नहीं सिर्फ/जमा किए खाद्यान्न/पुराने वस्त्र/पुरानी छत/पुराने पड़े हथियार/वुरे वक्त में याद आती हैं/पुरानी कविताएं भी।

और कविताओं को कौन बचाएगा? इस सवाल का जवाब कविता देती हैः

चिड़िया
फूल
आदमी
मिट्टी, ये सब, हां ये सब
आने वाले दिनों में
बचाएंगे कविता को।

एक अन्य कविता में कवि अच्छी कविता की जरूरत की बात करते हुए लिखता है कि दुनिया को दुनिया बनाए रखने के लिए...प्यार को प्यार बनाए रखने के लिए..जीवन को जीवन बनाए रखने के लिए एक अच्छी कविता की जरूरत है.’
कविता पर यह विमर्श नील कमल अपने इस संग्रह में अनायास ही उठाते हैं लेकिन उनकी यह चिंता आज के संदर्भों से सीधे जुड़ती है, यहां कुछ कविताओं का दृष्टांत लेकर  उस पर ध्यान ले जाने की कोशिश मात्र की गई है।
अलावे इसके नील कमल का संग्रह इसलिए भी याद रखने लायक है कि इसमें समय का दंश टिसता हुआ-सा आभिव्यक्त हुआ है। नील कमल की कविताओं का संसार घर-आंगन से होता हुआ, शहर गांव और यहां तक की सत्ता के गलियारे तक अपनी व्याप्ति रखता है। इस मायमें में नील कमल एक संजीदा और गंभीर कवि के रूप में सामने आते हैं। एक ओर इनकी कविताओं में संवेदना की गहरी परतें हैं तो दुसरी ओर शिल्प का सहज निर्वाह भी है। समय के चर्चित कवि एकांत श्रीवास्तव ने संग्रह की कविताओं का मूल्यांकन करते हुए ठीक ही लिखा है यहां समय और सभ्यता की कविताएं ही नहीं बल्कि घर-परिवार की बहुत नाजुक और आत्मीय कविताएं भी संकलित हैं। इस संदर्भ में मां, पिता का पत्र, किट्टू के लिए और आंगन सीरीज की कविताएं देखी जा सकती हैं। पिता का पत्र कविता में परदेस में खट रहे बेटे की चिंता जाहिर करती पंक्तियां को देखा जा सकता है
सिर्फ हिदायतें होती हैं अक्षरों में/जो पत्र के साथ रचती हैं परिधि/परिधि के बाहर खड़ा किया जाता हूं मैं/ केन्द्र में बोलता है चेहरा/चेहरा सूचना की भाषा में/रखता है एक परियोजना/कि गुड़िया की शादी की खातीर/बंद हो तो हों अन्य सारी परियोजनाएं/ कैसे मुंकिन है यह, पूछता हूं खुद से/पिता का आया है पत्र जब से।
वैसे तो इस संग्रह में विभिन्न रंगों और संवेदना से लबरेज कविताएं हैं लेकिन संग्रह की एक कविता लयात्मकता को लिए हुए है। यह विस्मित करने वाली बात है कि जहां लय में छन्द का निर्वाह कविता को एक कोमल रूप देती है, वहीं संवेदना की गहराई कविता को एक व्यापक रेंज प्रदान करती है। आंख के गहरे पानी में कविता की कुछ पंक्तियां उदाहरणस्वरूप देखी जा सकती हैं।

इतने ख्वाब कहां जाते हैं आंख के गहरे पानी में
उतराती और डूबती सांसें आंख के गहरे पानी में

उसके लहू का खारापन और उसकी आंखों के मोती
सागर भी बौना लगता है आंख के गहरे पानी में

उक्त संग्रह की दो कविताओं को पढ़ते हुए वरिष्ठ कवि धुमिल और केदारनाथ सिंह की याद आ सकती है लेकिन राहत की बात यह है कि कवि इन कविताओं में अपनी नीजता का निर्वाह बखुबी करता हुआ दिखता है और कविता को नए संदर्भ और ऊंचाई भी प्रदान करता है और यह करना कवि के संजीदा और मुकम्मल होने की ओर स्पष्टतया एक संकेत है। पंक्तियों को उदाहरण स्वरूप देखा जा सकता है
उसकी मौत की वजह/क्या है? धुआं..? आग..? रोटी..?/ इन तीनों कोणों के बीच में है/मौत की वजह/ जिसे पॉलिटिक्स कहते हैं

xxx

हाथ सुंदर लगते हैं/जब होते हैं किसी दूसरे के हाथ में/पूरी गर्माहट के साथ।

आधुनिक होते हुए भी कवि को परम्परा से परहेज नहीं है क्योंकि वर्तमान को सुंदर बनाने में अगर परम्परा का योगदान है तो वह कवि को ग्राह्य है। कविता स्पष्ट करती है

पीछे मुड़कर
देखना भी
जरूरी होता है
जब कहीं नजर न आती हो
आगे की राह।

वस्तुतः नील कमल का यह संग्रह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि वह समकालीन कविता की जमीन की तलाश की पहल करता हुआ जीवन और जगत पर एक तीक्ष्ण और संवेदनशील दृष्टि रखता है। संग्रह के फ्लैप पर एकांत श्रीवास्तव ने ठीक ही लिखा है-हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में जो युवा कवि चुपचाप सार्थक कविताएं लिख रहे हैं उनमें नील कमल का नाम प्रमुख है। उनके प्रथम संकलन की कविताएं उम्मीद जगाती हैं...भाषा और शिल्प में सजग कवि नील कमल की ये कविताएं इसी संसार को एक नए कोण से क्लिक करती हैं और अपनी वीनता और ताजगी से पाठक को विस्मित भी करती हैं।
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संग्रहः हाथ सुंदर लगते हैं
कविः नील कमल
प्रकाशनः कलानिधि प्रकाशन, 207, एल्डिको उदयन-1, जेल रोड, लखनऊ-2
मूल्यः 100 रू.