Wednesday, August 8, 2012

महेश चंद्र पुनेठा की किताब पर शिव कुमार मिश्र


        पहाड़ और पहाड़ के जीवन-संदर्भों से उपजी

महेश चंद्र पुनेठा की कविता 
                                                                                            
                      - शिव कुमार मिश्र 

      ’भय अतल मेंमहेश चंद्र पुनेठा का कदाचित पहला कविता संकलन है ,आरंभिक दौर की उनकी कविताओं का संकलन । बावजूद इसके , कविताओं के रूप में उसमें जो कुछ संकलित है , अपने अधिकांश में अपनी संभावनाओं को लेकर बेहद आश्वस्तिमूलक । आश्वस्तिमूलक इसलिए कि कविताओं में कवि की संवेदनाओं से छनकर पहाड़ के ,पहाड़ के जीवन के हर्ष -उल्लास और ताप-त्रास के, जो जीवन संदर्भ और जीवन-स्थितियाॅ रूपायित हुई हैं ,नितांत सहज और अकृत्रिम हैं। उनके रचाव में कहीं कोई पेंच या गाॅठ नहीं है।पहाड़ और पहाड़ के जीवन के बरक्स जो कुछ कवि की मनोभूमि में ,जैसे और जिस रूप में अंकित हुआ है ,बड़े ही पारदर्शी रूप में सामने आया है। महेश चंद्र पुनेठा ठेठ पहाड़ के कवि हैं - पहाड़ के जीवन को उसके सारे हर्ष-विषाद के साथ एकरूप होकर जीने वाले , पहाड़ के जीवन से उखड़े किसी महानगर की भीड़-भाड़ और घुटन भरे माहौल में ,उस जीवन के उखड़ने का दर्द लिए ,बिताए गए जीवन की स्मृतियों से मन को सकून देने वाले कवि नहीं। पहाड़ उनकी मनोभूमि में पूरे स्वत्व,पूरे वजूद के साथ विद्यमान है ,उनसे एकदम एकात्म ,अपने नाना रूपों और छवियों में । रोज ही अलस्सुबह अपने भारी -भरकम कंधों पर सूरज को उठाए ,उसके हिमाच्छादित शिखरों के साथ । जाड़े में बर्फ की रजाई ओढ़े हुए जो सो जाता है और जाड़ा बीतते ही नहाए-धोए मजदूर की तरह जो फिर से अपने काम में लग जाता है।कभी ऋषियों की मुद्रा में आशीर्वादों की वर्षा करता है ,तो कभी बाॅज-बुरूॅश के जंगल में अपने लाल रंग को बिखरते हुए सारे वातावरण को लालिमा से भर देता है । परंतु पहाड़ उस समय कवि को सबसे अधिक प्यारा लगता है ,जब ,उसी के शब्दों में - ’’ जब तुम्हारी खुरदुरी पीठ पर चढ़ रही होती है, कोई पहाड़ी स्त्री / और तुम थोड़ा -सा झुक जाते हो / नीचे घाटी में कोई घसियारिन गा रही होती है न्योली /साथ उसके तुम भी गाने लगते हो / और चली जाती है आवाज दूर-दूर तक ।’’ पहाड़ कवि की मनोभूमि में कितना रचा-बसा है ,यह छोटी सी कविता उसका साक्ष्य है। 
   
महेश चंद्र पुनेठा के कवि से मेरा पहला परिचय अरसा पहले कृति ओरपत्रिका में उनकी डोलीशीर्षक कविता पढ़कर हुआ था । उसके पहाड़ की यह नैनो’ -डोली , अपनी सर्वांगनिर्मिति में बहुत भाई थी -बेहद विपर्यस्त समय में भी अपने स्वत्व को बनाए रखने के नाते ।बेटियों की विदाई में छलके आॅसुओं से भीगी ,अस्पताल जाते रोगियों की आहों -कराहों से बोझिल और विचलित ,नवजातों की किलकारियों से गुंजायमान और अपने ढोने वालांे के पसीने से रंजित , गाॅव-घर के छोटे-बड़े -सबके सुख-दुःख की सहभागिनी -यह डोली -बहुत दिनों तक मेरी स्मृति में कौंधती रही थी।पहाड़ के जीवन के छोटे-बड़े तमाम संदर्भ और उनसे जुड़े ढेर सारे अनाम जन ,सब सजीव हुए हैं ,संकलन की कविताओं में -घसियारिनें ,लच्छू डाªइवर ,निगालों को छीलकर बच्चों के लिए मीठी-मीठी धुनों वाली मुरलियों को रूप और आकार देने वाला उमेदराम , कौसानी के सुमित्रानंदन पंत नहीं -वहाॅ के जीवन में रचे-बसे गोपीदास ,और तो और ,अपने नाम के विपरीत पहाड़ के जीवन की तमाम सारी-गहमागहमी का केंद्र बंजर टीला । यही नहीं , सड़क के किनारे लगा साग-पात का ठेला कवि की निगाहों से बच नहीं पाया है, जिसमें ’’एक -एक इंच का /किया गया है सही -सही उपयोग /ध्यान रखते हुए कि /कोई सब्जी छुपी न रह जाय/किसी और की ओट में /इतनी कम जगह में / इतनी सारी सब्जियों को /देना उचित स्थान /किसी कला से कम नहीं।’’ 
   
सचमुच में , पहाड़ अपने पूरे वजूद में , सारे रूप-रंग के साथ सजीव हुआ है, संकलन की कविताओं में -बड़े सहज और अपने प्रकृत रूप में । ऐसी कुछ कविताएं भी संकलन में हैं जो बदले समय-संदर्भ में पहाड़ी -जीवन में हुए बदलाव की ओर भी इशारा करती है - उसमें शहर की घुसपैठ और बाजार के अपने मायालोक के चलते।पहाड़ के जीवन से इतना सहज और सीधा साक्षात्कार कहाॅ हो पाया है लंबे समय से समकालीन कविता में ,कुछेक अपवादों को छोड़कर ।
  कुछ ऐसी कविताएं भी संकलन में हैं जो पहाड़ के जीवन-संदर्भों के साथ उससे इतर वृहत्तर जीवन-संदर्भों को भी अपने में समेटे हुए हैं। भागी हुइ लड़की कविता ऐसी ही कविता ऐसी ही कविता है जो स्त्री जीवन से जुड़ी एक कविता है-एक और पृथ्वी है औरतजिसमें स्त्री-जीवन अपनी पूरी महिमा के साथ कवि की संवेदना का विषय बना है। भय अतल मेंकविता बाल मनोविज्ञान के दायरे को एक निहायत भीतरी पर्त को खोलने के नाते सीधे मन पर अपना प्रभाव डालती है ,महेश चंद्र पुनेठा के कवि और उनके अध्यापक ,दोनों की सम्मलित भागीदारी में।

   
कुछ प्रेम कविताएं तथा बदलते समय के कुछ दीगर संदर्भ भी कविताओं में उभरे हैं।परंतु संकलन की कविताओं में पहाड़ और पहाड़ का जीवन अपनी अधिकतम व्याप्ति में जिस तरह सजीव हुआ है। महेश चंद्र पुनेठा के इस पहाड़ी कवि-व्यक्तित्व के प्रति मेरी मंगल-कामनाएं।  
     
भय अतल में’ ( कविता संग्रह), महेश चंद्र पुनेठा,  प्रकाशक - आलोक प्रकाशन , 99 ए/150 लूकरगंज , इलाहाबाद / मूल्य- 125/रु 
                                  
शिव कुमार मिश्र 17, मानसरोवर पार्क, वल्लभ  विद्या नगर - 388120, गुजरात।
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महेश जी की कुछ कविताएं आप इस लिंक पर पढ़ सकते है
http://bimleshtripathi.blogspot.in/2011/10/bimleshanhad_30.html

1 comment:

  1. लेखक ने अपनी समझ से अच्छी समीक्षा की है , मैंने संग्रह अभी पढ़ी नही है ,इसीलिए और कुछ कहना उचित नही होगा अभी .

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